कबीर दास जी का कवि/जीवन परिचय : दो रचनाएं, भाव पक्ष, कला पक्ष और साहित्य में स्थान ।
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यह बालक नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति को पड़ा मिला और इन्होंने इनका पालन-पोषण किया। कहा जाता है, कि काशी में मरने से स्वर्ग और मगहर में मरने से पर नरक मिलता है । अंधविश्वासों के विरोधी कबीर मृत्यु के समय मगहर चले गये। उन्होंने 120 वर्ष की आयु में संवत् 1575 वि. (सन् 1518) में मगहर में अपने प्राण त्याग दिए।
कबीर दास जी
दो रचनाएं, भाव पक्ष, कला पक्ष और साहित्य में स्थान ।
दो रचनाएं - साखी, सबद, रमैनी ।
भाव-पक्ष - कबीर जी को हिन्दी काव्य में रहस्यवाद का जन्मदाता कहा जाता है । कबीर के काव्य में आत्मा और परमात्मा के संबंधोेें की स्पष्ट व्याख्या मिलती है। इन्होंने अपने काव्य में परमात्मा को प्रियतम एवं आत्मा को प्रेयसी के रूप में चित्रित किया है। उनके काव्य में विरह की पीड़ा है। कबीर ने कहीं-कहीं अनूठे रूपकों द्वारा अपने गूढ़ भावों की अभिव्यक्ति प्रदान की है।
कलापक्ष - कबीरदास जी के काव्य में चमत्कार के दर्शन होते हैं । कविता उनके लिए साध्य न होकर साधन मात्र थी। उनकी रचनाओं में साहित्यिक सौंदर्य, कहीं - कहीं छंद - गठन तथा अलंकार-विधान के सौष्ठव का अभाव मिलता है। उनके काव्य में अनायास ही मौलिक एवं सार्थक प्रतीकों, अन्योक्तियों एवं रूपकों का सफल प्रयोग मिलता हैै।
साहित्य में स्थान - कबीरदास निर्गण धारा के श्रेष्ठ कवि हैं।
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